Saturday, June 30, 2012


"गिरणगाव" कल आज और कल "गिरणगाव" यह मराठी शब्द है गिरण मतलब "मिल" गाव मतलब तो आप जानते हो तो यह एक गाव था जो मुंबई शहर मै बसा था मुंबई शहर के दक्षिन मध्य मुंबई मै जो शुरू होती है परेल से भायखला और शिवडी से वरली तक यह मुंबई शहर के विभाग है इसी विभज मै ये गाव बस्ताता था जिन की सुबह मिल के सायरन के साथ होती थी. ये सारे मिल मजदुर महाराष्ट्र के अलग अलग हिसो से आये थे कोकण, पशिम महाराष्ट्र साथी दुसरे राज्य से भी थे आंध्र प्रदेश यूपी बिहार से. यहाँ ये एक कोशिश है उस गिरणगावको फिरसे आज की हमारी पीढ़ी है उनको यहाँ मौलुम हो क्युकी मुंबई यह इतिहास उनको जानना है उनको समजना. मेरी इस लेख दूर कोशिश है वह गिरणगाव समजो. गिरणगाव इस किताब के पन्नो को खोज ने की कोशिश है नारायण मेघजी लोखंडे देश के पाहिले मजदूर नेता रहे है उह्नोने मजदुर को संघटीत किया और उनके अधिकारों को भी जागृत किया उनके पहचत कॉ श्रीपाद डांगे, जोर्ज फर्नार्दिस डॉ दता सामंत ईनोने मजदूर को संघटित किया सन १८५६ मै पहली टेक्स्तिले मिल मुंबई मै शरू हुई उस समय मुमाबी शहर मै ६४ मिलले थी और उसकी सारी कमान नारायण मेघजी लोखंडे के हात मै थी उनके बाद सन १९७४ कॉ श्रीपाद डांगे के नेतृत्व के साथ हुई हड़ताल और १९८२ डॉ दता सामंत के नेतृत्व के साथ हुई हड़ताल ये दोनों भी गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड मै दर्ज हुई. ये दोनों भी संप भारत इतिहास मै मिल मजदूर के मोवेमेंट का पन्ना रहेगा.१९८२ के बाद मिल मजदूर के मोवेमेंट का जो दूर था वह अहिस्ता अहिस्ता ख़त्म होने लगा. मिल मलिकोने और सरकारे ने मिलके मिल मजदूर हड़ताल करनेका जो मुलभुत अधिकार था वही ख़त्म करनेका कम किया और तो और मिल मजदूरो को जबरन फिरसे मिल मै कम करने के लिए जाना पड़ा ये बात है जब १९८२ के हड़ताल के बाद की उनके पास से लिख के लिया की हम फिरसे हड़ताल नहीं करेंगे. इसमे तकरीबन १ लाख मिल मजदूरो को काम पे नहीं लिया गया. क्या हुआ उनका किसी को कुछ पत्ता नहीं और नहीं सरकारने ये जानने की कोशिश की मिल चलने के बजाये मिल हड़ताल को अपनी ढाल बनाकर मिल मलिकोने मिल की जमीन बेचने की मांग सरकार के पास की यह दुर्भाग्य पूरण बात है मान्यताप्राप्त मिल युनियाने मिल मालिको के पक्ष मै एक मार्च निकला था. सन १९८४ से १९९० एस दूरान मुंबई शहर की १० मिलले बंद पडगई उसमे १५ हज़ार मजदुर कम कर रहे थे मिल मलिकोके इस धोरण की वजासे उनपे बेकारी की तलवार आगयी.उनको तनख्वहा भी नहीं दी गयी.उनके फंड जो भी बाकि थे वोह भी नहीं दी गए उसके लिए फिरसे लढाई शरू होगई. इस हड़ताल के बाद जो गिरणगाव मै जो आवाज़ था वह थम्ब्सा गया.पर मिल मजदुर हर मानने वालो मै से नहीं थे उनोने कूदने मिल चलने की शुरवात की और मुनाफा भी कर के दिकाया मुइम्बाई की स्वान और रघुवंशी मिल फिरसे शरू हो गयी एक तरफ न्यायालय मै लढाई तो दूर तरफ रस्ते का आन्दोलन ये दोनोभी सतह साथ करने पड़ रहे थे ये कम जादा दिन नहीं चला आखिर कर जब भारत १९९१ मै न्यू इकोनोमी पोलिस्य आई, जागतिकीकारन इस देश मै आया तब ये मिल अहिस्ता अहिस्ता सारी बंद होने लगी. संघर्ष की वजासे मिल मजोदुरोको थोड़ी बहुत रहत मिल मगर मिल फिरसे शुरू नहीं होए. मुंबई के लोअर परेल मै फिनिक्क्स नामक मिल मै मालिकोने विकास के नाम पे बड़े बड़े शूपिंग माल बोल्लिंग आल्यी टॉवर आये उसके साथ साथ एक कल्चर आये जो चंगळ वाद को बढावा देनेवाला था जो गिरणगाव का नहीं था. गिरणगवा का खुद का कल्चर था जो एक दुसरेके सुख दुख मै शरीक होने वाला था.उसमे एक अपनापन था आज वो सारा ख़त्म हो रहा है. मिल मलिकोने अपनी मिल चलने के लिए मिल मजदूरो रहने के लिए मकान बनवाए थे उसी मक़ाम मै उनकी तिन पुस्तिया गयी है आज वही मकान उनको खली करने कह रहे है.इन्ही मिल मजदूरो की वह जसे मी मालिकों बल्बोतेपर दिवाली मनाई आज वही मालिक उस मजदुर को भूल गए. आज हर जगह बाद बड़े टॉवर, माल दिख रहे है उन छोटी छोटी दुकानों क्या उनके दुकानों मै कोंन जायेगा. आज मिल मजदुर फिरसे गाव लोट रहे है, कुछ मुंबई शहर मै वो फेरीवाल का काम, वाच्मन का काम कर रहे है. ये शहर उन मजदूरो को भूल गया जिसने अपना खून देकर इस मुंबई को महाराष्ट्र राज्य मै रहेने दिया. उस मिल मजूदरो का कोंन पूछ रहा है उनको. मगर आजभी लढाई जरी है अपने हक्क के लिए आजभी मिल मजदुर गाव से आते है जभी आन्दोलन होता अपने घर के हो या अपनी फंड का प्रश्न हो किसीकी परवाह ना करते आते है एक उमीद के साथ जब सोचता हु आनेवाले गिरणगाव के बार मै तो दिमाग सुन्न हो जाता है